प्रशासन मस्त, ग्रामीण त्रस्त चैनपुर के ओरामार में ‘एकता’ ने तोड़ी ‘व्यवस्था’ की चुप्पी!

वादा नहीं, काम चाहिए! ओरामार के ग्रामीणों ने खुद लिखी विकास की नई इबारत

चैनपुर : सरकारी योजनाओं में होने वाली वर्षों की देरी और प्रशासनिक लापरवाही के बीच, चैनपुर प्रखंड के बामदा पंचायत के ओरामार गांव ने एक ऐतिहासिक मिसाल पेश की है। गांव के महिला और पुरुषों ने अद्भुत एकजुटता का परिचय देते हुए, बिना किसी सरकारी मदद के, महज अपने श्रमदान के बल पर लगभग 4 किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क का निर्माण कर दिखाया है।यह सड़क ओरामार गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ती है, लेकिन लंबे समय से इसकी हालत इतनी जर्जर थी कि बरसात के मौसम में यह कीचड़ और पानी से पूरी तरह भर जाती थी।

आए ग्रामीणों का सुने

ग्रामीणों ने बताया कि स्कूली छात्र-छात्राओं को विद्यालय पहुँचने में भारी मशक्कत करनी पड़ती थी।बीमार लोगों को अस्पताल तक ले जाना ‘मौत से जंग’ लड़ने जैसा था। कई बार तो रास्ता खराब होने के कारण एंबुलेंस भी गांव तक नहीं पहुँच पाती थी।इन कठिन परिस्थितियों ने ग्रामीणों को स्वयं पहल करने के लिए मजबूर कर दिया।

ग्रामीण एकता का शानदार प्रदर्शन

इस सामूहिक प्रयास में गांव के हर वर्ग बुजुर्ग, महिलाएं, युवा और बच्चे — ने भाग लिया। यह दृश्य सचमुच प्रेरणादायक था, जहाँ किसी ने फावड़ा चलाया, किसी ने टोकरी में मिट्टी ढोई, तो किसी ने रास्ते की सफाई की।

महिलाओं का अहम भूमिका दिखी

इस अभियान में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। अंजलि टेट, कलिस्ता खड़िया, किरण देवी, जयमणी देवी, बिमला देवी, असारी देवी, कुशमानिया देवी जैसी महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया, जो ग्रामीण एकता और महिला सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण है।मुनेश्वर खड़िया, मांगेलेश्वर खड़िया, देवशय खड़िया, लाहरो मुंडा, अर्जुन गोप, देवेंद्र खड़िया, दुर्गा खड़िया सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण इस कार्य में शामिल रहे।ग्रामीणों का कहना है कि इस सड़क के बनने से अब सिर्फ आवागमन सुगम नहीं होगा, बल्कि यह गांव की अर्थव्यवस्था को भी गति देगी। अब किसान अपनी फसल, सब्जियां और उत्पाद आसानी से बाजार तक पहुँचा सकेंगे।

ग्रामीणों का आक्रोश

“प्रशासन मस्त है और ग्रामीण त्रस्त। जनप्रतिनिधि और नेता सिर्फ वोट के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन गांव की जीवनरेखा कहे जाने वाले रास्ते की उन्हें कोई चिंता नहीं। यह सड़क सरकारी लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है।”सड़क का निर्माण तो श्रमदान से हो गया है, लेकिन ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से पुरजोर मांग की है कि इस कच्ची सड़क को जल्द से जल्द पक्की सड़क में परिवर्तित किया जाए, ताकि यह ग्रामीणों की जीवनरेखा बनी रहे और आने वाले वर्षों में फिर से जर्जर न हो।ओरामार गांव की इस आत्मनिर्भर पहल ने यह साबित कर दिया है कि यदि इच्छाशक्ति और सामूहिक एकता हो, तो सरकारी सहायता के बिना भी गांव के विकास की राह स्वयं तय की जा सकती है। यह घटना पूरे गुमला और आस-पास के क्षेत्रों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई है।

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